भारत में पीतल की मूर्तियाँ केवल सजावट नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक हैं।
परंतु यदि इन्हें सही दिशा में न रखा जाए, तो इनके शुभ प्रभाव आधे रह जाते हैं।
आइए जानें कि वास्तु शास्त्र के अनुसार पीतल की मूर्तियाँ कहाँ और कैसे रखनी चाहिए।
वास्तु शास्त्र में उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) को सबसे पवित्र माना गया है।
यह दिशा भगवान शिव की मानी जाती है, और यहीं पर पूजा स्थल या मंदिर होना शुभ होता है।
पीतल की लक्ष्मी-गणेश, विष्णु, शिव या सूर्य की मूर्तियाँ इस दिशा में रखने से घर में शांति, समृद्धि और धन की वृद्धि होती है।
? ध्यान रखें: मूर्तियाँ दीवार से कम से कम 1 इंच दूरी पर रखें, ताकि उनके चारों ओर ऊर्जा का संचार बना रहे।
यदि आप सूर्य देव की पीतल मूर्ति रखते हैं, तो उसे घर के पूर्व दिशा में रखना सबसे शुभ होता है।
पूर्व दिशा प्रकाश और नई ऊर्जा का प्रतीक है। यह मूर्ति जीवन में उत्साह, सफलता और आत्मविश्वास बढ़ाती है।
दक्षिण दिशा यम की दिशा मानी जाती है।
इस दिशा में देवी-देवताओं की मूर्तियाँ रखने से ऊर्जा असंतुलन हो सकता है।
यदि गलती से मूर्तियाँ दक्षिण में रख दी गई हैं, तो उन्हें तुरंत ईशान कोण या पूर्व दिशा में स्थानांतरित करें।
मूर्तियाँ ज़मीन पर सीधे न रखें; हमेशा लकड़ी या संगमरमर के आसन पर रखें।
पूजा घर में मूर्ति की ऊँचाई 9 इंच से 18 इंच तक आदर्श मानी जाती है।
यदि मूर्तियाँ बहुत बड़ी हैं, तो उन्हें ड्रॉइंग रूम के उत्तर या पूर्व दिशा में भी रखा जा सकता है।
पीतल की मूर्तियाँ धातु से बनी होती हैं, इसलिए उन पर धूल या नमी जमा हो सकती है।
हर सोमवार या शुक्रवार को इन्हें नींबू पानी या टमाटर के रस से हल्के हाथों से साफ करें और सूखे कपड़े से पोंछें।
इससे मूर्ति की चमक और ऊर्जा दोनों बनी रहती हैं।
लक्ष्मी-गणेश: धन और सुख-समृद्धि के लिए
शिव पार्वती: दांपत्य जीवन की स्थिरता के लिए
विष्णु लक्ष्मी: घर में स्थायी समृद्धि के लिए
सूर्य देव: आत्मविश्वास और उन्नति के लिए
पीतल की मूर्तियाँ तभी शुभ फल देती हैं जब उन्हें वास्तु शास्त्र के नियमों के अनुसार रखा जाए।
सही दिशा, स्वच्छता और श्रद्धा के साथ पूजा करने से ये मूर्तियाँ आपके जीवन में असीम सकारात्मक ऊर्जा और सफलता लाती हैं।
“जहाँ सही दिशा में पूजा होती है, वहाँ सौभाग्य अपने आप आ जाता है।”