भारतीय संस्कृति में धातुओं का विशेष स्थान रहा है। सोना, चाँदी, तांबा और पीतल जैसी धातुएँ न केवल सौंदर्य बढ़ाती हैं, बल्कि इनके पीछे गहरा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी छिपा है। आज हम जानेंगे कि घर में पीतल की मूर्तियाँ रखने के क्या फायदे हैं और क्यों यह परंपरा आज भी प्रासंगिक है।
पीतल (Brass) ताँबा और जस्ता (Copper & Zinc) से मिलकर बना होता है। ये दोनों धातुएँ ऊर्जा का उत्कृष्ट संवाहक मानी जाती हैं। जब इन धातुओं से बनी मूर्तियाँ घर में रखी जाती हैं, तो यह वातावरण को शुद्ध करती हैं और सकारात्मक ऊर्जा फैलाती हैं।
विशेष रूप से जब इन्हें पूजा स्थल पर रखा जाता है, तो ध्यान और पूजा की ऊर्जा पूरे घर में प्रसारित होती है।
शास्त्रों में कहा गया है कि पीतल की मूर्ति को नियमित रूप से पूजा और स्पर्श करने से मन शांत रहता है।
इसके धात्विक गुण तनाव और चिंता को कम करने में मदद करते हैं और व्यक्ति को आध्यात्मिक संतुलन प्रदान करते हैं।
वास्तु शास्त्र के अनुसार, पीतल की मूर्तियाँ घर के उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) दिशा में रखना अत्यंत शुभ माना जाता है।
यह दिशा भगवान शिव और ज्ञान की दिशा है।
यहाँ पीतल की मूर्ति रखने से घर में सौभाग्य, समृद्धि और स्वास्थ्य बढ़ता है।
पीतल एक मजबूत और टिकाऊ धातु है। लकड़ी या मिट्टी की मूर्तियों की तुलना में यह लंबे समय तक सुरक्षित रहती है।
थोड़ी-सी देखभाल से ये मूर्तियाँ पीढ़ियों तक सुरक्षित रखी जा सकती हैं।
हमारे प्राचीन ग्रंथों में वर्णन है कि देवताओं की मूर्तियाँ पीतल में बनाना धर्मसम्मत और पवित्र माना गया है।
पीतल की लक्ष्मी-गणेश, विष्णु, शिव या सूर्य की मूर्ति पूजा में रखने से देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है और घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है।
ताँबा और जस्ता दोनों ही एंटी-बैक्टीरियल तत्वों से भरपूर हैं।
ऐसे में पीतल की वस्तुओं का उपयोग (जैसे मूर्ति, दीपक या कलश) घर में स्वच्छता और रोगों से सुरक्षा में मदद करता है।
पीतल की मूर्तियाँ केवल सजावट का साधन नहीं हैं — यह हमारे संस्कार, परंपरा और ऊर्जा संतुलन का प्रतीक हैं।
अगर आप अपने घर में शांति, समृद्धि और सकारात्मकता लाना चाहते हैं, तो आज ही अपने पूजा स्थल में पीतल की मूर्तियों का समावेश करें।
“जहाँ पीतल की चमक होती है, वहाँ ईश्वरीय आभा अपने आप फैलती है।”